क्षिप्रा नदी, जिसे शिप्रा भी कहा जाता है, उज्जैन की आत्मा मानी जाती है।
यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और मोक्ष का प्रतीक है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन के समय अमृत निकला, तब देवताओं ने इस नदी को अमृत का स्पर्श प्रदान किया। इसीलिए क्षिप्रा के जल में स्नान करने से पापों का क्षय और मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।
नदी का उद्गम काकड़ी टेकरी (इंदौर के समीप) से होता है, और यह उज्जैन होते हुए चंबल नदी में समाहित होती है। उज्जैन नगरी में इसका प्रवाह रामघाट, दत्त अखाड़ा, मंगलनाथ और त्रिवेणी संगम जैसे अनेक पवित्र घाटों से होकर गुजरता है।
हर दिन संध्या आरती के समय क्षिप्रा तट पर गूंजते मंत्र, दीपों की श्रृंखलाएँ और श्रद्धालुओं की आस्था एक अद्भुत दृश्य रचती है।
सिंहस्थ कुंभ मेले के समय यहीं लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं और इसे “पवित्र मोक्षदायिनी नदी” के रूप में पूजते हैं।
क्षिप्रा केवल जल का प्रवाह नहीं, बल्कि उज्जैन की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का जीवंत प्रतीक है।
इसके किनारे हर युग में ऋषि-मुनियों का तप, राजाओं का यश, और भक्तों की भक्ति साक्षात होती रही है।
