देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में ‘महाकालेश्वर’ का विशेष स्थान है। यह एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जो दक्षिणमुखी है, जिससे इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है। यह स्वयंभू एवं अत्यंत जाग्रत शिवलिंग है — जिसका दर्शन और पूजन मोक्षदायक माना गया है।
भस्म आरती की अनूठी परंपरा
महाकाल मंदिर की पहचान उसकी प्रातःकालीन भस्म आरती से होती है। परंपरागत रूप से यह आरती श्मशान की ताज़ी चिता की भस्म से की जाती थी, किंतु वर्तमान में गाय के गोबर से बने कंडों की भस्म का उपयोग किया जाता है।
यह भी नियम है कि भस्म आरती केवल पुरुष भक्तों के लिए खुली होती है, और वे तभी प्रवेश कर सकते हैं जब उन्होंने बिना सिला हुआ सोला वस्त्र धारण किया हो।
महाकाल की अद्वितीय महिमा
लोकश्रुति है —
“जो महाकाल का भक्त है, उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
महाकालेश्वर की महिमा का वर्णन पुराणों में इस प्रकार मिलता है –
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।
भूलोके च महाकालो लिंगत्रय नमोऽस्तु ते॥
अर्थात् — आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग हैं।
मंदिर का स्थापत्य और संरचना
वर्तमान महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण राणोजी शिंदे शासनकाल में हुआ था। यह मंदिर तीन खंडों में विभाजित है —
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निचले खंड में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग,
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मध्य खंड में ओंकारेश्वर लिंग,
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और शीर्ष तल पर नागचंद्रेश्वर लिंग, जिनके दर्शन वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी के दिन होते हैं।
शिखर के ऊपरी भाग में भगवान शंकर-पार्वती की नागवेष्टित प्रतिमा विराजमान है — जो अत्यंत सुंदर और दुर्लभ मानी जाती है।
मंदिर परिसर और अन्य देवालय
महाकाल मंदिर परिसर में कुण्ड के पूर्वी भाग से गर्भगृह में प्रवेश होता है। उत्तर दिशा में भगवान राम और देवी अवन्तिका की आकर्षक प्रतिमाएँ हैं। दक्षिण की ओर गणपति और वीरभद्र, तथा समीप में नंदीगण विराजमान हैं।
मंदिर में वृद्ध महाकालेश्वर (जूना महाकाल), अनादिकल्पेश्वर, और सप्तऋषि मंदिर जैसे प्राचीन शिवालय भी हैं।
यहीं नीलकंठेश्वर और गौमतेश्वर मंदिर भी दर्शनीय हैं।
आध्यात्मिक अनुभूति
गर्भगृह की रजत जलाधारी, नागवेष्टित लिंग, और तांत्रिक रजत छत इसे अत्यंत रहस्यमय और आकर्षक बनाते हैं। दीवारों पर अंकित शिव स्तुतियाँ और सदैव प्रज्ज्वलित नंदादीप वातावरण को पूर्णतः शिवमय कर देते हैं।
