नाम से ही इस मंदिर की विशिष्टता झलकती है।
इसे “चारधाम मंदिर” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्त को चारों धाम — बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम — के दर्शन का फल प्राप्त होता है।
जो व्यक्ति चारों धाम की कठिन यात्रा नहीं कर पाता, यदि वह श्रद्धा और आस्था के साथ इस मंदिर में दर्शन करता है, तो उसे भी वही पुण्य प्राप्त होता है।
स्थापना और इतिहास
यह मंदिर श्री हरसिद्धि देवी मंदिर की दक्षिण दिशा में थोड़ी-सी दूरी पर स्थित है।
इसका निर्माण स्वामी शांतिस्वरूपानंद जी तथा युगपुरुष श्री परमानंद जी महाराज के प्रयत्नों से अखण्ड आश्रम परिसर में हुआ।
-
श्री द्वारका धाम एवं जगन्नाथ धाम की प्राण प्रतिष्ठा सन 1997 में,
-
श्री रामेश्वर धाम की सन 1999 में,
-
तथा श्री बद्रीविशाल धाम की प्राण प्रतिष्ठा 2005 में संपन्न हुई।
धार्मिक और स्थापत्य विशेषताएँ
मंदिर में स्थापित प्रतिमाएँ अपने मूल स्वरूप के समान ही बनाई गई हैं, जिससे श्रद्धालु एक ही स्थान पर चारों धामों का पवित्र अनुभव कर सकते हैं।
मंदिर परिसर में प्रवेश द्वार पर एक सुंदर बगीचा है जो परिसर के सौंदर्य को और भी बढ़ा देता है।
संत निवास और आयोजन
मंदिर के पाश्र्वधाम में संत निवास स्थित है, जहाँ स्वामी जी का निवास एवं साधना कक्ष है।
मंदिर में समय-समय पर श्रीमद् भागवत कथा, धार्मिक प्रवचन और आध्यात्मिक आयोजनों का आयोजन होता रहता है।
