काल भैरव मंदिर

श्री क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित काल भैरव मंदिर उज्जैन का एक अत्यंत प्राचीन, चमत्कारिक और रहस्यमय मंदिर है।
यहाँ विराजमान भगवान काल भैरव को “उज्जैन के रक्षक देवता” माना जाता है, और यह मंदिर उनकी भक्ति, तंत्र साधना और चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है।

मंदिर की विशिष्टता

इस मंदिर की सबसे अद्भुत विशेषता यह है कि यहाँ भगवान काल भैरव मदिरा (शराब) ग्रहण करते हैं।
पुजारी द्वारा जब प्रसाद के रूप में मदिरा का पात्र मूर्ति के मुख के समीप लगाया जाता है और मंत्रोच्चार किया जाता है,
तो देखते ही देखते भगवान स्वयं सारी मदिरा पी लेते हैं।
यह अद्भुत दृश्य हर भक्त को श्रद्धा और विस्मय से भर देता है।

मूर्ति के सामने झूले में बटुक भैरव की प्रतिमा भी विराजमान है, और मंदिर की बाहरी दीवारों पर अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ अंकित हैं।
सभागृह के उत्तरी भाग में पाताल भैरवी नामक एक छोटी गुफा भी है, जिसे अत्यंत रहस्यमयी माना जाता है।

पौराणिक कथा

भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव से मानी जाती है।
“शिव महापुराण” के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद हुआ कि ब्रह्मांड का सृष्टिकर्ता कौन है।
ब्रह्मा ने स्वयं को श्रेष्ठ बताया, जिससे भगवान शिव क्रोधित हुए और उन्होंने भैरव रूप धारण किया।
भैरव ने ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर काट दिया, जिससे वे “काल भैरव” कहलाए।
इस अपराध के परिणामस्वरूप, उन्हें प्रायश्चितस्वरूप वर्षों तक एक भिक्षुक के रूप में घूमना पड़ा।
जब वे उज्जैन पहुँचे, तब यहाँ उनका पाप क्षीण हुआ और उन्होंने निवास किया —
यही स्थान आज काल भैरव मंदिर के रूप में पूजित है।

धार्मिक महत्व

काल भैरव उज्जैन के आठ भैरवों में सबसे प्रमुख माने जाते हैं।
यहाँ तंत्र साधना, भैरव उपासना और विशेष रूप से अघोरी परंपरा का भी प्रभाव देखा जाता है।
माना जाता है कि जो व्यक्ति सच्ची भक्ति से भगवान काल भैरव की आराधना करता है,
उसे साहस, सुरक्षा, और शत्रु भय से मुक्ति प्राप्त होती है।

स्थान और वातावरण

मंदिर का वातावरण रहस्यमय, परंतु अत्यंत शक्तिशाली है।
क्षिप्रा तट की शांति और मंदिर में गूंजते “जय काल भैरव” के नारे
हर भक्त को एक दिव्य ऊर्जा से भर देते हैं।

धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भ

उज्जैन (प्राचीन अवन्ती नगरी) सदियों से भारत का एक प्रमुख तीर्थस्थल रहा है।
यहीं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, महर्षि सांदीपनि आश्रम, और कुंभ मेला स्थल स्थित हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब सागर मंथन के समय अमृत कलश की बूँदें गिरीं,
उनमें से एक बूँद उज्जैन में गिरी थी — जिससे यह भूमि सदैव पवित्र मानी जाती है।
क्षिप्रा नदी उसी अमृत का प्रतीक मानी जाती है।

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