काल भैरव मंदिर

श्री कालभैरव मंदिर, उज्जैन

यह मंदिर श्री शीप्रा नदी के तट पर स्थित है और भगवान कालभैरव को समर्पित है। यह मंदिर अत्यंत प्राचीन एवं चमत्कारिक माना जाता है। यहाँ भगवान कालभैरव की विशेषता यह है कि वे मदिरा पान करते हैं। पुजारी मंत्रों के उच्चारण के साथ मदिरा के पात्र को भगवान के सामने रखते हैं और देखते ही देखते मूर्ति इसे पी जाती है। मूर्ति के सामने झूले में बटुक भैरव की मूर्ति भी विराजमान है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर अन्य देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। सभागृह के उत्तर की ओर एक छोटी गुफा ‘पाताल भैरवी’ भी है।

भगवान कालभैरव की स्थापना के पीछे एक पौराणिक कथा है। महा पुराण शिव में वर्णित है कि भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच घमंड उत्पन्न हो गया। ब्रह्मा ने स्वयं को सर्वोच्च निर्माता मानकर पूजा की अपेक्षा जताई, जिससे शिव नाराज हुए। उन्होंने भैरव रूप में अवतार लेकर ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। इसके पश्चात ब्रह्मा के चार सिर ही शेष रहे। कालभैरव ब्रह्मा के सिर लिए हुए भिक्षु के रूप में पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं, जब तक उनके पाप का प्रायश्चित नहीं हो जाता।

उज्जैन का पवित्र स्थान होना:

  • प्राचीन काल में उज्जैन अवंती राज्य की राजधानी थी और महाभारत में भी इसका उल्लेख मिलता है।

  • उज्जैन हिंदू धर्म के सात पवित्र शहरों (सप्तपुरी) में से एक है।

  • यहाँ हर बार कुंभ मेला आयोजित होता है, जो देशभर से लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।

  • उज्जैन में विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भी स्थित है।

  • यह शहर भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा के साथ-साथ महर्षि सांदीपनि से शिक्षा प्राप्त करने का स्थल भी रहा है।

शीप्रा नदी का महत्व:
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूँदें उज्जैन पर गिरीं, जिससे यह क्षेत्र पवित्र बन गया। उज्जैन के पार बहती शीप्रा नदी इसी पौराणिक घटना से उत्पन्न मानी जाती है।