उज्जैन का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। गढ़ क्षेत्र में हुई खुदाई से प्राप्त आद्यैतिहासिक एवं प्रारंभिक लोहयुगीन सामग्री से यह सिद्ध होता है कि यहाँ मानव सभ्यता का विकास बहुत प्रारंभ में ही हो चुका था।
पुराणों और महाभारत के अनुसार वृष्णिवीर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम यहाँ गुरु सांदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने आए थे। कृष्ण की पत्नी मित्रवृंदा उज्जैन की राजकुमारी थीं। उनके भाई विंद और अनुविंद महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
🕉️ प्रद्योत वंश
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उज्जैन के सिंहासन पर प्रतापी राजा चंड प्रद्योत विराजमान थे। भारत के अन्य शासक उनसे भयभीत रहते थे। उनकी पुत्री वासवदत्ता और वत्स नरेश उदयन की प्रणय गाथा प्रसिद्ध है। प्रद्योत वंश के पश्चात उज्जैन मगध साम्राज्य का अंग बन गया।
✍️ विक्रमादित्य और कालिदास का युग
महाकवि कालिदास उज्जैन के प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। कालिदास को उज्जयिनी अत्यंत प्रिय थी, और उन्होंने अपने ग्रंथों — विशेषकर मेघदूत — में इसका अद्भुत वर्णन किया है।
उन्होंने उज्जयिनी को “स्वर्ग का खंड” कहा, जहाँ के वृद्धजन उदयन और वासवदत्ता की प्रेमगाथा सुनाने में दक्ष हैं। उज्जैन की अट्टालिकाएँ, क्षिप्रा नदी, महाकाल की आरती और गौरीगणाओं का नृत्य — इन सबने कालिदास की रचनाओं को प्रेरित किया।
📜 प्रमाणिक इतिहास
प्रमाणिक अभिलेखों में उज्जैन का उल्लेख ईसा पूर्व 600 वर्ष के आसपास मिलता है। उस समय भारत के सोलह जनपदों में अवंति जनपद भी एक था। इसका उत्तरी भाग (राजधानी उज्जैन) और दक्षिणी भाग (राजधानी महिष्मति) दो हिस्सों में विभक्त था। उस काल में सम्राट चंद्रप्रद्योत का शासन था।
🕰️ मौर्य साम्राज्य
चंद्रगुप्त मौर्य उज्जैन आए थे, और उनके पुत्र अशोक यहाँ के राज्यपाल रहे। अशोक की पत्नी वेदिसा देवी से उन्हें महेंद्र और संघमित्रा नामक संतानें हुईं, जिन्होंने श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
अशोक के शासनकाल में उज्जैन का सर्वांगीण विकास हुआ।
⚔️ मौर्य साम्राज्य का पतन
मौर्यों के पतन के बाद उज्जैन शकों और सातवाहनों की प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन गया। राजा विक्रमादित्य ने शकों के प्रथम आक्रमण को विफल किया। बाद में रुद्रदमन जैसे पश्चिमी शक शासकों ने यहाँ शासन किया।
🏺 गुप्त युग
चौथी शताब्दी में गुप्तों और औलिकरों ने शकों को पराजित कर मालवा पर अधिकार किया। इस काल में आर्थिक और औद्योगिक प्रगति हुई। छठी से दसवीं शताब्दी के बीच उज्जैन कलचुरी, मैत्रक, उत्तरगुप्त, पुष्यभूति, चालुक्य, राष्ट्रकूट और प्रतिहार राजवंशों की स्पर्धा का केंद्र रहा।
🌿 हर्षवर्धन और परमार काल
सातवीं शताब्दी में उज्जैन हर्षवर्धन साम्राज्य में सम्मिलित हुआ। उनके शासन में शहर का विकास हुआ। हर्ष की मृत्यु के बाद नवीं से ग्यारहवीं शताब्दी तक उज्जैन परमार वंश के अधीन रहा।
राजा भोज, मुंजदेव, उदयादित्य जैसे शासकों ने साहित्य, कला और संस्कृति की अद्भुत सेवा की।
⚔️ दिल्ली सल्तनत
बारहवीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के आक्रमणों से परमार वंश का पतन हुआ। सन् 1235 में इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण कर शहर को लूटा और प्राचीन मंदिरों को नष्ट किया।
बाद में मालवा स्वतंत्र हुआ और मांडू राजधानी बनी। खिलजी और अफगान सुल्तानों ने यहाँ शासन किया। अकबर ने मालवा को मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित कर उज्जैन को प्रांतीय मुख्यालय बनाया।
🐎 मराठा शासन
सन् 1737 में उज्जैन सिंधिया वंश के अधिकार में आया। राणोजी सिंधिया ने महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। उनके मंत्री रामचंद्र शेणवी ने वर्तमान महाकाल मंदिर का निर्माण कराया।
1810 में राजधानी ग्वालियर स्थानांतरित की गई, लेकिन उज्जैन का सांस्कृतिक विकास जारी रहा। 1948 में ग्वालियर राज्य का विलय मध्य भारत में हुआ।
🌸 उज्जयिनी का गौरव
उज्जयिनी आज भी अपने धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
यहाँ के प्रमुख स्थलों में शामिल हैं —
भगवान महाकालेश्वर मंदिर, गोपाल मंदिर, हरसिद्धि माता मंदिर, गढ़कालिका, कालभैरव, विक्रांत भैरव, मंगलनाथ, सिद्धवट, चौबीस खंभा देवी, भर्तृहरि गुफा, कालियादेह पैलेस, जन्तर मंतर, और चिंतामन गणेश मंदिर।
प्रत्येक 12 वर्ष में यहाँ सिंहस्थ महापर्व आयोजित होता है, जब देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु मोक्ष की प्राप्ति की कामना से उज्जयिनी में एकत्र होते हैं।
