महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – उज्जैन
देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर का विशेष स्थान
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व इसलिए अद्वितीय है क्योंकि यह दक्षिणमुखी शिवलिंग है। यह स्वयंभू है और अत्यंत जाग्रत माना जाता है।
भस्म आरती:
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प्रत्येक दिन तड़के 4 बजे भस्म आरती होती है।
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पहले यह श्मशान की ताजी चिता की भस्म से होती थी, अब गाय के गोबर के कंडों की भस्म का उपयोग किया जाता है।
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भस्म आरती केवल पुरुषों के लिए होती है, जो बिना सिलाई वाला सोला पहने होते हैं।
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यह माना जाता है कि महाकाल का भक्त हो तो काल भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
महाकालेश्वर की महिमा:
“आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।
भूलोके च महाकालो लिंगत्रय नमोस्तु ते॥”
अर्थात्: आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
मंदिर संरचना:
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वर्तमान मंदिर राणोजी शिंदे शासन की देन है।
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यह तीन खण्डों में विभक्त है:
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निचला खण्ड – महाकालेश्वर
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मध्य खण्ड – ओंकारेश्वर
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उच्चतम खण्ड – नागचन्द्रेश्वर
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शिखर के तीसरे तल पर भगवान शंकर-पार्वती की दुर्लभ मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं।
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गर्भगृह में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग, गणेश, कार्तिकेय और पार्वती की आकर्षक प्रतिमाएँ हैं।
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दीवारों पर शिव की मनोहारी स्तुतियाँ अंकित हैं।
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नंदादीप सदैव प्रज्ज्वलित रहता है।
मंदिर परिसर:
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दक्षिण की ओर छोटे-मोटे शिवालय हैं, जिनमें वृद्ध महाकालेश्वर, अनादिकल्पेश्वर और सप्तर्षि मंदिर प्रमुख हैं।
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प्रांगण में 84 लिंगों में से 4 शिवालय भी प्रतिष्ठित हैं:
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5वें – अनादिकल्पेश्वर
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7वें – त्रिविष्टपेश्वर
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72वें – चन्द्रादित्येश्वर
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80वें – स्वप्नेश्वर
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दक्षिण-पश्चिम प्रांगण में वृद्धकालेश्वर और जूना महाकाल का विशाल मंदिर है।
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सप्तऋषियों के मंदिर, नीलकंठेश्वर और गौमतेश्वर मंदिर भी यहीं स्थित हैं।
विशेषताएँ:
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मंदिर के गर्भगृह में शिवपंचायतन – महाकालेश्वर, गणपति, देवी और स्कंद के साथ विराजमान हैं।
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दक्षिण के विशाल कक्ष में नंदी गण विराजमान हैं।
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मंदिर का कलात्मक रजत जलाधारी आवरण, नागवेष्टित गर्भगृह और छत अत्यंत आकर्षक हैं।