भर्तृहरि की गुफा – उज्जैन
स्थान और महत्व:
शिप्रा नदी के तट के ऊपरी भाग में भर्तृहरि की गुफा स्थित है। इस गुफा में प्रवेश संकरा रास्ता होकर होता है। यह स्थान नाथ संप्रदाय के साधुओं का प्रिय स्थल है और योग साधना के लिए उत्तम माना जाता है। गुफा के पास गढ़कालिका मंदिर भी स्थित है। कहा जाता है कि यहीं भर्तृहरि तपस्या किया करते थे।
भर्तृहरि – जीवन और कृतियाँ:
भर्तृहरि महान विद्वान, कवि और योगी थे। उन्होंने संस्कृत साहित्य में अमूल्य योगदान दिया। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं:
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श्रृंगारशतक
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वैराग्यशतक
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नीतिशतक
गुफा में गोपीचंद्र की मूर्ति और भर्तृहरि की समाधि भी स्थित है।
भर्तृहरि की तपस्या और योग शक्ति:
कहा जाता है कि भर्तृहरि ने काम, क्रोध, लोभ और अहंकार पर विजय प्राप्त की थी। उनकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि इंद्र ने शिला फेंककर उन्हें परीक्षा में डाला, लेकिन भर्तृहरि ने योगबल से उसे वहीं स्थिर कर दिया। उनके पंजे पर आज भी उस घटना का चिन्ह देखा जा सकता है।
गुरु गोरखनाथ और परीक्षा:
भर्तृहरि अपने गुरु गोरखनाथ जी के आदेशानुसार कठिन परीक्षाओं से गुजरे। इसमें शामिल थे:
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नंगे पैर मरुभूमि में यात्रा
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उष्णता, कंटीली झाड़ियाँ और कठिन परिस्थितियों में धैर्य रखना
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अदृश्य शक्ति द्वारा बनाये गए पेड़ और भोग-प्रसाद जैसी परीक्षाएँ
सभी परीक्षाओं में भर्तृहरि ने धैर्य, संयम और गुरु आज्ञा पालन दिखाया। जब गुरु ने उन्हें अष्टसिद्धि और नवनिधि देने की आज्ञा दी, तो भर्तृहरि ने केवल गुरु की प्रसन्नता को ही सर्वोपरि माना।
संदेश और महत्व:
भर्तृहरि की गुफा यह सिखाती है कि मनुष्य जीवन में संयम, तपस्या और गुरु की आज्ञा पालन से असीम ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है।
उल्लेखनीय:
आज भी भर्तृहरि की गुफा और गोपीचंद्र की गुफा उज्जैन में साधना और धार्मिक अध्ययन के लिए प्रसिद्ध हैं।