जंतर मंतर वेद शाला

जंतर मंतर, जिसे वेदशाला भी कहा जाता है, उज्जैन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह भारत के प्राचीन खगोलीय ज्ञान और ज्योतिषीय परंपरा का जीवंत प्रमाण है। यहाँ आज भी समय, ग्रहों की स्थिति और खगोलीय गणनाएँ पारंपरिक उपकरणों के माध्यम से की जाती हैं।

स्थापना और इतिहास

जंतर मंतर का निर्माण सवाई जयसिंह द्वितीय (जयपुर नरेश) ने सन् 1725 ईस्वी में कराया था।
सवाई जयसिंह एक महान ज्योतिषाचार्य और खगोलशास्त्री थे। उन्होंने भारत में कुल पाँच वेदशालाएँ स्थापित कीं — दिल्ली, जयपुर, मथुरा, वाराणसी और उज्जैन में।
उज्जैन को उन्होंने चुना क्योंकि यह कर्क रेखा (Tropic of Cancer) के निकट स्थित है और प्राचीन काल से ही इसे समय निर्धारण का केंद्र (Prime Meridian) माना जाता रहा है।

वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व

वेदशाला में खगोलीय गणनाओं के लिए कई प्राचीन उपकरण निर्मित किए गए हैं।
इनका उपयोग सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों की गति, समय निर्धारण तथा संक्रांति और विषुव के अध्ययन हेतु किया जाता था।
यहाँ का हर यंत्र पत्थर और धातु से अत्यंत सटीकता के साथ बनाया गया है, जिससे बिना दूरबीन के खगोलीय स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।

मुख्य उपकरण (मुख्य यंत्र)

  1. सम्राट यंत्र – सूर्य की छाया से समय ज्ञात करने का उपकरण।

  2. नाडीवलय यंत्र – सूर्य के ऊँचाई कोण को मापने हेतु।

  3. दिगंश यंत्र – ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति मापने के लिए।

  4. भ्रम यंत्र – ग्रहों की गति का आकलन करने के लिए।

  5. शंकु यंत्र – दिन और रात की लंबाई का निर्धारण करता है।

इन उपकरणों के माध्यम से खगोलविद मौसम परिवर्तन, ग्रहण और पंचांग निर्माण तक की गणनाएँ करते थे।

उज्जैन की वेदशाला की विशेषता

उज्जैन की वेदशाला अन्य सभी वेदशालाओं में विशिष्ट मानी जाती है, क्योंकि यह प्राचीन उज्जैन-रेखा (Zero Meridian of India) पर स्थित है।
यहाँ से समय की गणना और देश के पंचांग निर्माण का कार्य किया जाता था।
यह स्थान आज भी भारतीय ज्योतिष और खगोल विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए अध्ययन और अनुसंधान का प्रमुख केंद्र है।

वर्तमान स्वरूप

आज उज्जैन की वेदशाला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है।
यहाँ पर्यटकों के लिए जानकारी पट्ट, गाइड और प्रदर्शन के साधन उपलब्ध हैं।
संध्याकाल में सूर्य की अंतिम किरणों के साथ जब सम्राट यंत्र की छाया मिटती है, तो यह दृश्य काल और ब्रह्मांड के अद्भुत संतुलन का प्रतीक प्रतीत होता है।

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