कहावत है —
“उज्जैन में सात वार, नौ त्यौहार”, अर्थात् इस नगर में प्रतिदिन धार्मिक एवं सामाजिक तीज-त्योहारों का कोई न कोई आयोजन अवश्य होता है।
1. पूजन आरती
प्रातःकाल महाकाल की भस्म आरती और सायंकाल क्षिप्रा नदी की आरती संपन्न होती है, जिसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं।
2. पर्व काल
सोमवती अमावस्या, शनिष्चरी अमावस्या, कार्तिक पूर्णिमा जैसे पर्वों पर श्रद्धालुजन क्षिप्रा में स्नान करते हैं, देव दर्शन, दान-पुण्य और धार्मिक कर्मकांडों से पुण्यफल प्राप्त करते हैं।
3. कालीदास समारोह
प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल अकादमी से पूर्णिमा तक पाँच दिवसीय यह आयोजन होता है। इसमें देश-विदेश के विद्वान और कलाकार भाग लेते हैं।
कालिदास रचित नाटकों का मंचन, ग्रंथ शोधन, चित्रकला प्रदर्शन आदि का आयोजन किया जाता है, जिसका लाभ आम नागरिक भी उठाते हैं।
4. हरिहर मिलाप
प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी की रात यह पावन मिलन होता है।
इस अवसर पर महाकाल गोपाल मंदिर लाए जाते हैं, जहाँ पूजन और सम्मान समारोह होता है।
विदा के बाद गोपालजी का पुनः महाकाल में स्वागत किया जाता है और अंत में भस्म आरती संपन्न होती है।
5. यात्राएँ
(अ) पंचक्रोशी यात्रा
प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को यह पवित्र पदयात्रा नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन से प्रारंभ होती है और वैशाख अमावस्या को वहीं पुनः समाप्त होती है।
श्रद्धालु क्रमशः द्वारपालेश्वर (पिंगलेश्वर), कायारूणेश्वर (करोहन), बिल्वेश्वर (अम्बोदिया), और दुर्दरेश्वर (जैथल) के दर्शन कर पुनः उज्जैन लौटते हैं।
रामघाट पर स्नान-पूजन के बाद यात्री मंगलनाथ जाकर विश्राम करते हैं और अमावस्या की सुबह स्नान कर नागेश्वर महादेव के दर्शन से यात्रा पूर्ण करते हैं।
(ब) अष्ट तीर्थ यात्रा
कुछ यात्री रामघाट से कर्कराज महादेव के दर्शन कर अष्ट तीर्थी यात्रा आरंभ करते हैं।
कालियादेह महल तक के मार्ग में आने वाले मंदिरों के दर्शन करते हुए वहाँ विश्राम करते हैं, और अगले दिन मंगलनाथ, नागनाथ के दर्शन कर यात्रा पूर्ण करते हैं।
(स) चार द्वार दर्शन
कुछ श्रद्धालु रात्रि में पंचक्रोशी यात्रियों के विश्राम स्थलों पर जाकर कीर्तन करते हुए पाँच स्थानों के महादेव के दर्शन करते हैं और पुण्यफल प्राप्त करते हैं।
6. सिंहस्थ मेला
उज्जैन का सिंहस्थ मेला देश के चार कुंभों में से एक है।
यह प्रत्येक 12 वर्ष में, जब बृहस्पति सिंह राशि में आता है, वैशाख मास में एक माह तक मनाया जाता है।
देश-विदेश के साधु-संत, महंत, विभिन्न अखाड़ों के धर्मगुरु यहाँ एकत्रित होते हैं।
श्रद्धालु क्षिप्रा स्नान, दान-पुण्य और संतों के सानिध्य से आत्मिक शांति एवं आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
कुंभ दान और गुप्त दान का विशेष महत्व होता है।
7. अष्ट भैरव
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बटुक भैरव
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काल भैरव
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दण्डपाणि भैरव
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आनंद भैरव
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आताल पाताल भैरव
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काला गोरा भैरव
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गोर भैरव
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(अष्टम) अन्य स्थानीय भैरव रूप
8. ग्यारह रूद्र
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पाकपर्दी
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कपाली
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झूलपाणी
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चीरवासा
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दिगंबर
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गिरीष
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कामाचारी
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शर्व
(अन्य स्थानीय रूद्र स्वरूप भी पूजित हैं।)
9. छः विनायक
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विघ्ननाशक – अंकपात में विष्णु सागर पर
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मोदकप्रिय – हरसिद्धि के पीछे, गुरु अखाड़े के पास
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स्थिर मन – गढ़ पर, गढ़कालिका के समीप
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महामोदक गणेश – महाकाल मंदिर के कुण्ड पर
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गणाधिपति गणेश – भेगड़ूढ़ पुल के पास
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महागणपति – अखण्ड आश्रम के सामने
10. प्रमुख देवियाँ
नगर में चौबीस माताओं (देवियों) के अतिरिक्त प्रसिद्ध मंदिर हैं —
गढ़कालिका, नगरकोट की रानी, भूखी माता, विंध्यवासिनी, और हरसिद्धि माता।
इनकी विशेष पूजा नवरात्रि में होती है।
11. संगम स्थल
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त्रिवेणी संगम
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खड़गता संगम
12. समाधियाँ
गढ़ पर राजा भर्तृहरि और पीर मत्स्येन्द्रनाथ की समाधियाँ स्थित हैं।
13. कृष्ण-सुदामा प्रसंग
अंकपात में स्थित सांदीपनि आश्रम कृष्ण-सुदामा की विद्या स्थली है।
नारायणा गाँव में आज भी उनके द्वारा लाई गई लकड़ी की मूली (भारी) रखी हुई है।
आंवलना नवमी के दिन कर्कराज से प्रारंभ होकर नगर परिक्रमा की जाती है।
14. अधिक मास और अवन्तिका का महत्व
प्रत्येक तीन वर्ष में एक अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) आता है, जब दो मास एक ही नाम से होते हैं।
इस अवधि में श्रद्धालु धार्मिक अनुष्ठान, दान-पुण्य, और स्नान-पूजन करते हैं।
कहा गया है कि अधिक मास में किया गया दान सामान्य समय से अनेक गुना फलदायी होता है।
इस समय अधिकतर श्रद्धालु सप्त सागर और नव नारायण दर्शन करते हैं।
