उज्जैन के दक्षिण भाग में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित चिंतामणि गणेश मंदिर भगवान गणेश के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक आस्था के लिए, बल्कि अपनी प्राचीनता और अद्भुत वास्तुकला के लिए भी विख्यात है।
मंदिर की ऐतिहासिक महत्ता
चिंतामणि गणेश मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है।
कहा जाता है कि यह मंदिर परम प्रतापी राजा विक्रमादित्य के शासनकाल से पूर्व का है।
यहाँ प्रतिष्ठित चिंतामणि गणेशजी की मूर्ति स्वयंभू (स्वतः प्रकट) मानी जाती है — अर्थात यह मानव निर्मित नहीं है।
इस कारण यहाँ आने वाले भक्तों का विश्वास है कि भगवान स्वयं यहां विराजमान हैं और भक्तों की हर चिंता हर लेते हैं।
चिंता निवारक गणेश
“चिंतामणि” नाम का अर्थ ही है — ‘जो चिंताओं का नाश करे’।
ऐसा कहा जाता है कि यहाँ दर्शन करने मात्र से व्यक्ति की सभी मानसिक, पारिवारिक और आर्थिक चिंताएँ समाप्त हो जाती हैं।
भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए यहाँ नारियल, लड्डू, दूर्वा और मोदक का भोग लगाते हैं।
वास्तु और स्थापत्य
मंदिर का निर्माण काले पत्थर से हुआ है, जो प्राचीन कालीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
मंदिर के भीतर तीन गणेश प्रतिमाएँ विराजमान हैं —
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चिंतामणि गणेश
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सिद्धि गणेश
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बुद्धि गणेश
इन तीनों का दर्शन एक साथ करने से सुख, सफलता और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मंदिर के गर्भगृह की छत पर उकेरे गए शिल्प और नक्काशी मन मोह लेते हैं।
श्रद्धा और उत्सव
हर बुधवार, गणेश चतुर्थी, और अंगारक चतुर्थी को यहाँ विशेष पूजा और आरती का आयोजन होता है।
गणेशोत्सव के दौरान मंदिर परिसर में हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं।
आध्यात्मिक अनुभव
माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहाँ आकर पूजा करता है,
भगवान चिंतामणि गणेश उसकी जीवन की सभी बाधाएँ दूर कर देते हैं और उसे शांति, सुख और समाधान प्रदान करते हैं।
